गुरु घासीदास एक महान समाज सुधारक और संत थे, जिनका जीवन भारतीय समाज में गहरे बदलाव लाने की दिशा में प्रेरणादायक रहा।
उनका जन्म 18 अप्रैल 1756 को छत्तीसगढ़ राज्य के गुरूर गांव में हुआ था। उनका जीवन और शिक्षाएँ समाज में व्याप्त जातिवाद, भेदभाव, अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन बनकर उभरीं। गुरु घासीदास ने “सतनाम” का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो आज भी उनके अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है।
गुरु घासीदास का मानना था कि भगवान का नाम ही सबसे पवित्र और सत्य है। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक समान है और किसी को भी जन्म, जाति, या धर्म के आधार पर नीचा नहीं समझना चाहिए। वे अपने उपदेशों में हमेशा यह कहते थे कि ईश्वर सर्वव्यापी हैं और हर व्यक्ति में वही आत्मा है। उनका विचार था कि लोग अपनी आत्मा की शुद्धता और ईश्वर के प्रति श्रद्धा के माध्यम से अपने जीवन को श्रेष्ठ बना सकते हैं। गुरु घासीदास ने एकता और प्रेम के संदेश को फैलाया और यह सिखाया कि समाज में भेदभाव और ऊँच-नीच के भाव को समाप्त करना चाहिए।
उनकी शिक्षा का मुख्य आधार “सतनाम” था, जिसका अर्थ है “सच्चा नाम”, अर्थात ईश्वर का नाम। गुरु घासीदास के अनुसार, “सतनाम” का उच्चारण करने से व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित और शांतिपूर्ण बना सकता है, साथ ही वह भक्ति और समर्पण के मार्ग पर चलकर आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर हो सकता है। गुरु घासीदास ने यह भी सिखाया कि हर व्यक्ति को सत्य, अहिंसा, और सच्चाई का पालन करना चाहिए। उन्होंने अपने अनुयायियों से यह आग्रह किया कि वे किसी भी प्रकार के अंधविश्वास, मूर्तिपूजा, और पाखंड से दूर रहें, क्योंकि इनसे केवल भ्रम और समाज में विकृति फैलती है।
गुरु घासीदास ने समाज में व्याप्त जातिवाद और असमानता के खिलाफ मजबूत आवाज उठाई। उनका उद्देश्य था कि समाज में सभी वर्गों को समान अधिकार मिले और कोई भी व्यक्ति अपनी जाति या वर्ग के आधार पर तिरस्कृत न हो। उन्होंने विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, आदिवासियों और गरीबों को जागरूक किया और उन्हें आत्मसम्मान की भावना दी। उनके अनुसार, सभी मनुष्य एक समान हैं और उन्हें किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त होकर एक साथ मिलकर समाज में समानता और शांति की दिशा में काम करना चाहिए।
गुरु घासीदास ने एक धार्मिक आंदोलन की शुरुआत की, जिसे “सतनाम पंथ” के नाम से जाना जाता है। इस पंथ के अनुयायी उनके उपदेशों के अनुसार जीवन जीते हैं, जिसमें मुख्य रूप से सत्य का पालन, धार्मिक आस्थाएँ, समाज में समानता और एकता का भाव है। गुरु घासीदास का यह पंथ आज भी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में प्रचलित है, और उनके अनुयायी उनके सिद्धांतों का पालन करके समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।
गुरु घासीदास का प्रभाव न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत में महसूस किया गया। उनका जीवन आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शिक्षाएँ समाज में भाईचारे, समानता, और शांति का प्रचार करती हैं। उनकी जयंती, जो 18 अप्रैल को मनाई जाती है, यह दिन उनके उपदेशों को पुनः याद करने और समाज में उनके सिद्धांतों को लागू करने का अवसर होता है। गुरु घासीदास ने यह सिद्ध कर दिया कि एक व्यक्ति, यदि सत्य और ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को दृढ़ बनाए रखे, तो वह समाज में एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है। उनका योगदान भारतीय समाज के उत्थान के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।